Weenews desk। हर साल की तरह इस साल भी असम में मानसून ने दस्तक दे दी है, जिससे राज्य के 18 जिले बाढ़ की चपेट में आ गए हैं। लगभग 30 हजार लोग इससे प्रभावित हो चुके हैं। यह एक नियमित आपदा बन चुकी है, जिससे निपटना राज्य के लिए हर वर्ष चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है। भारतीय मौसम विभाग ने आगामी दिनों में भीषण बारिश और तूफान की चेतावनी दी है, जिससे बाढ़ की स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। बाढ़ का दुष्प्रभाव
हर साल, बाढ़ से असम को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। एक सरकारी रिपोर्ट के अनुसार, बाढ़ के कारण राज्य को सालाना लगभग 200 करोड़ रुपये का नुकसान होता है। यहां की प्रसिद्ध वन्यजीव अभ्यारण जैसे काजीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान भी इस प्राकृतिक आपदा से अछूते नहीं रहते। 2020 की बाढ़ में काजीरंगा के 90 प्रतिशत हिस्से में पानी भर गया था, जिससे यहां के वन्यजीव भी संकट में आ गए थे।
आखिर क्यो ऐसी बाढ़
असम में बाढ़ की समस्या की जड़ें राज्य की भौगोलिक स्थिति और जलवायु में हैं। असम की प्रमुख नदी ब्रह्मपुत्र है, जो राज्य की 50 सहायक नदियों से जल ग्रहण करती है। यह नदी अमेजन के बाद दुनिया की दूसरी ऐसी नदी है, जो अपने साथ सबसे ज्यादा पानी और अवसाद लेकर आती है। इससे निचले इलाके हर साल बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं।
बाढ़ की गंभीरता
असम का 31 लाख हेक्टेयर इलाका बाढ़ से प्रभावित होता है, जो कि राज्य का लगभग 39 प्रतिशत हिस्सा है। यह क्षेत्र भारत के कुल बाढ़ प्रभावित हिस्सों का दस प्रतिशत है। इसके पीछे राज्य की भौगोलिक संरचना और प्राकृतिक भूभाग की प्रमुख भूमिका है। यहां की जलवायु भी बाढ़ की समस्या को बढ़ावा देती है।
समाधान की आवश्यकता
प्रत्येक वर्ष बाढ़ की यह विभीषिका राज्य के लाखों लोगों को प्रभावित करती है और राज्य के लिए गंभीर आर्थिक नुकसान का कारण बनती है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इसे रोका नहीं जा सकता? क्या कोई ऐसा तरीका नहीं है जिससे राज्य को इस भारी नुकसान से बचाया जा सके?
बाढ़ से निपटने के लिए राज्य सरकार और स्थानीय प्रशासन को प्रभावी योजना बनाने की जरूरत है। ब्रह्मपुत्र और उसकी सहायक नदियों के पानी के बहाव को नियंत्रित करने के लिए वैज्ञानिक और तकनीकी उपाय अपनाए जाने चाहिए। इसके अलावा, बाढ़ की पूर्व चेतावनी प्रणाली को और भी सशक्त बनाने की आवश्यकता है, ताकि समय रहते लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा सके।
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