रायपुर। स्कूल शिक्षा विभाग में शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण को लेकर उठा विवाद अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अब व्याख्याता से प्राचार्य पद पर पदोन्नति की प्रक्रिया पर सवाल खड़े हो गए हैं। विभाग पर आरोप है कि वह इस बार कुछ खास शिक्षकों को फायदा पहुंचा रहा है, जिससे संवैधानिक समानता के सिद्धांतों का उल्लंघन हो सकता है। यदि यह मामला कोर्ट पहुंचा, तो यह पदोन्नति फिर खटाई में पड़ सकती है।
लोक शिक्षण संचालनालय ने टी संवर्ग के करीब 840 प्राचार्यों की काउंसलिंग 20 से 23 अगस्त 2025 तक तय की है। बताया जा रहा है कि 1335 पदों में से बाकी के करीब 400 पदों पर उन व्याख्याताओं को सीधे पोस्टिंग दी जा रही है, जो फिलहाल प्रभारी प्राचार्य या अन्य प्रशासनिक पदों पर काम कर रहे हैं। इस कदम को लेकर जानकार नाराजगी जता रहे हैं। उनका कहना है कि पदोन्नति में ऐसी विशेष सुविधा देना आम तौर पर काउंसलिंग में नहीं होता और यह मनमाना फैसला है।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 का उल्लंघन हो सकता है, जो सरकारी नौकरी में सभी को समान अवसर देने की गारंटी देता है। उनका मानना है कि जब सहायक शिक्षक से प्रधान पाठक की पदोन्नति काउंसलिंग के जरिए हुई, तो व्याख्याताओं को यह विशेष लाभ क्यों दिया जा रहा है। अगर यह मामला कोर्ट में जाता है, तो पूरी प्रक्रिया पर रोक लग सकती है, क्योंकि यह समानता के सिद्धांत के खिलाफ है।
जानकारों का यह भी कहना है कि एक ही विभाग में अलग-अलग पदोन्नतियों के लिए अलग-अलग नियम बनाना ठीक नहीं है। फिलहाल केवल 844 पदों की काउंसलिंग हो रही है और बाकी पदों को सीधे भरा जा रहा है, जिससे उन शिक्षकों को नुकसान हो सकता है जो सीधे पदोन्नति की उम्मीद लगाए बैठे थे। इस फैसले से सरकार की भी किरकिरी होने की संभावना
है।