धान की फसल में कीटों पर नियंत्रण पाने किसानों को दी सलाह
जबलपुर
जिले में सीधी बुवाई और रोपा वाली दोनों धान की फसल लगभग दो से तीन सप्ताह की हो रही है। इस अवस्था में फसलों में जड़ों का फैलाव एवं टिलरिंग शुरू होती है। इस समय किसानों द्वारा अपनी फसलों में उर्वरको की पहली टॉप ड्रेसिंग की जा रहा है। धान की फसल में इस अवस्था में तना छेदक कीट एवं पत्ती मोड़क कीट का प्रकोप देखा जा रहा है। प्रारंभिक अवस्था में इन कीटों का नियंत्रण नहीं किया गया तो फसल में 75 से 80 प्रतिशत तक नुकसान होने की संभावना बनी रहती है।
सहायक संचालक कृषि रवि आम्रवंशी ने यह जानकारी देते हुये बताया कि तना छेदक कीट की इल्ली तने के भीतर घुसकर तने के अंदर का गूदा खाती रहती है। इससे पौधे का ऊपरी हिस्सा सूखा जाता है और सूखे हिस्से को खींचने से वह आसानी से खिंच जाता है और इसे सूंघने पर सड़ी हुई बदबू आती है। इससे पहचान सकते हैं कि फसल पर तना छेदक कीट का आक्रमण हुआ है।
इसी तरह पत्ती मोड़क कीट की इल्ली धान की पत्तियों को मोड़कर उसके भीतर रहती है और अंदर ही अंदर पत्तियों का हरा पदार्थ एवं पत्तियों को खाती रहता है। खेत में धान की मुड़ी हुई पत्तियाँ दिखाई देती है तो यह समझ लेना चाहिए कि फसल पर पत्ती मोड़क कीट का आक्रमण तेजी से हो रहा है, इससे प्रकाश संश्लेषण की क्रिया कम हो जाती है। दोनों कीटों के प्रकोप से फसल कमजोर हो जाती हैं, टिलरिंग कम होती हैं और उत्पादन प्रभावित होता है।
सहायक संचालक कृषि ने दोनों प्रकार के कीट के नियंत्रण के लिए किसानों को क्लोरोपाइरीफास 20 ई सी 125 मिलीलीटर दवा प्रति एकड़ का घोल बनाकर खेतों में स्प्रे करने या क्लोरट्रानिलिपोल 18.5 प्रतिशत एस सी दवा 60 मिलीलीटर प्रति एकड़ छिड़काव करने की सलाह दी है।
श्री आम्रवंशी के अनुसार कारटाप हाइड्रोक्लोराइड 50 प्रतिशत एस पी 400 से 500 ग्राम प्रति एकड़ पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने अथवा थायोमैथोक्सम दवा 60 ग्राम प्रति एकड़ 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करने से भी दोनों कीटों का नियंत्रण किया जा सकता है।