बिलासपुर,। : गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी के उन प्रोफेसरों को छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट से कोई राहत नहीं मिली है, जिन पर NSS कैंप में हिंदू छात्रों को जबरन नमाज़ पढ़वाने और उनका ब्रेनवॉश करने का आरोप है। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस राकेश मोहन पाण्डेय की डिवीजन बेंच ने प्रोफेसरों की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने अपने खिलाफ दर्ज FIR को चुनौती देते हुए उसे रद्द करने की मांग की थी। हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि FIR रद्द करना दुर्लभतम मामलों में ही संभव है और पुलिस को जांच पूरी करने दी जानी चाहिए।

दरअसल, यह मामला तब सामने आया जब गुरु घासीदास सेंट्रल यूनिवर्सिटी की NSS इकाई द्वारा कोटा क्षेत्र के शिवतराई में 26 मार्च से 1 अप्रैल तक आयोजित कैंप में शामिल हुए कुछ हिंदू छात्रों ने आरोप लगाया कि ईद के दिन उन्हें जबरदस्ती नमाज पढ़वाई गई और उनका ब्रेनवॉश किया गया। छात्रों ने इस संबंध में कोनी थाने में शिकायत दर्ज कराई थी।

शुरुआत में यूनिवर्सिटी प्रबंधन ने कोई ठोस कार्रवाई नहीं की और केवल एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी का गठन किया, जिसकी रिपोर्ट भी सार्वजनिक नहीं की गई। इससे आक्रोशित हिंदूवादी संगठनों और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने यूनिवर्सिटी का घेराव कर जमकर विरोध प्रदर्शन किया। लगातार बढ़ते हंगामे के बाद पुलिस ने NSS के कोआर्डिनेटर दिलीप झा, मधुलिका सिंह, सूर्यभान सिंह, डॉ. ज्योति वर्मा, प्रशांत वैष्णव, बसंत कुमार और डॉ. नीरज कुमारी सहित सात प्रोफेसरों के खिलाफ बीएनएस की विभिन्न धाराओं और छत्तीसगढ़ धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 1968 की धारा 4 के तहत FIR दर्ज कर गिरफ्तारियां भी की थीं।

प्रोफेसरों ने अपनी याचिका में FIR को राजनीति से प्रेरित बताते हुए कहा था कि शिकायत कैंप समाप्त होने के 14-15 दिन बाद, यानी 14 अप्रैल को साजिश के तहत दर्ज कराई गई थी। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि कैंप में 150 हिंदू छात्र थे, जिनमें से केवल तीन ने शिकायत की है, जबकि अन्य छात्रों ने आरोपों को झूठा बताया है और मुस्लिम छात्रों ने अपनी इच्छा से नमाज़ पढ़ी थी।

हालांकि, सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों का कड़ा विरोध करते हुए कहा कि प्रोफेसरों पर गंभीर आरोप हैं और गवाहों ने भी आरोपों की पुष्टि की है। सभी पक्षों को सुनने के बाद हाईकोर्ट ने निहारिका इंफ्रास्ट्रक्चर बनाम महाराष्ट्र राज्य के फैसले का हवाला देते हुए प्रोफेसरों की याचिकाओं को खारिज कर दिया, जिससे पुलिस को इस मामले में अपनी जांच जारी रखने की अनुमति मिल

गई है।

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