

भगवान का स्मरण करते रहने से मिलती है कष्टों से मुक्ति: वेंकटेशाचार्य
साईं मंदिर में भागवत कथा
सिहोरा
भगवान के नाम का स्मरण करते रहने मात्र से आपको सारे कष्ट पाप संताप से मुक्ति मिल जायेगी। उक्ताशय के विचार परम पूज्य वेंकटेशाचार्य ने साई मंदिर में चल रही सप्त दिवसीय संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा में कृष्ण की बाल लीलाओं की मीमांसा करते हुए व्यासपीठ से व्यक्त किए।
उन्होंने आगे कहा जब भगवान के जन्म का उत्सव चल रहा था, तभी सुंदर रुप में पुतना भगवान का वध करने पहुंच गई और मौका पाकर पुतना भगवान को लेकर आकाश में चली गई तो भगवान ने विशाल रुप धारण कर लिया और जैसे ही वह स्तन पान कराने लगी तो उसे जोर से पकड़ लिया वो चिल्लानें लगी तो भगवान ने कहा जिसे पकड़ लेता हूं छोड़ता नहीं हूं । भगवान अशुभ कर्म को नहीं बल्कि शुभ कर्म को देखते है।इसी तरह जब भगवान के करवट बदलने का उत्सव मनाया जा रहा था और भगवान का पालना बैलगाड़ी के नीचे रखा था तभी कंश का भेजा हुआ दैत्य सकटासुर बैलगाड़ी पर आकर बैठ गया, लेकिन जैसे ही भगवान के पैर का स्पर्श हुआ तो बैलगाड़ी पलट गई और राक्षस का उद्धार हो गया। जिस तरह भक्त भगवान को पाने लालायित रहते हैं उसी तरह भगवान भी भक्त को पाने लालायित रहते हैं आगे कहा चिता की आग की तपन लगने से पुण्य चले जाते हैं, लेकिन तुलसी की काष्ठ चिता में पड़ी हो तो उसकी तपन से सारे पाप समाप्त हो जाते हैं।कंश ने कृष्ण को मारने तीसरा प्रयोग किया जब माता यशोदा ने भगवान को स्तन पान कराकर बैलगाड़ी के नीचे रखे पालने में लिटाया तो तृणावर्त राक्षस बगूडे के रुप में आया और भगवान को उड़ाकर ले गया तो भगवान ने उसके सिर को पकड़कर एक विशाल चट्टान पर मारकर उसका उद्धार कर दिया। भगवान ने दो बार यशोदा माता को अपने स्वरूप के दर्शन कराये है एक तो जब भगवान मिट्टी खा रहे थे तब और दुसरी बार माता के स्तन पान कराते समय अपने मुख में सारा ब्रह्माण्ड दिखा दिया। कथा के पूर्व सूर्यदत्त मिश्रा, सुभद्रा मिश्रा,प्रकाश पांडे, अश्वनी कुमार पाठक, नंदकुमार परौहा, हीराधर बडगैया, प्रकाश प्रेरिका मिश्रा, प्रतिष्ठा मिश्रा, श्रेष्ठ मिश्रा आदि ने व्यासपीठ का पूजन किया।

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