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शिव महापुराण में भगवान श्री गणेश जन्मोत्सव एवं विवाह की कथा।
सिहोरा
बाबाताल शिव मंदिर सिहोरा में शिव महापुराण का आयोजन चल रहा है।
गुरुवार को गणेश जन्मोत्सव एवं विवाह प्रसंग पर प्रवचन देते हुए कथावाचक पंडित इंद्रमणि त्रिपाठी ने कहा कि मां पार्वती ने संतान पाने के लिए पुण्यक व्रत रखा था। माना जाता है कि इस व्रत की महिमा से ही मां पार्वती को गणेश जी संतान के रूप में मिले थे। उन्होंने कहा कि ब्रह्मावैवर्त पुराण के मुताबिक, जब सभी भगवान गणेश जी को आशीर्वाद दे रहे थे, उस समय शनि देव सिर को झुकाए खड़े थे।ये देखने पर मां पार्वती ने उनसे उनका सिर झुका कर खड़े होने का कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि अगर वे गणेश जी को देखेंगे तो हो सकता है कि उनका सिर शरीर से अलग हो जाएगा। लेकिन पार्वती जी के कहने पर शनि देव ने गणेश जी की ओर नजर उठाकर देख लिया, जिसके परिणामस्वरूप गणेश जी का सिर उनके शरीर से अलग हो गया। पंडित इंद्रमणि त्रिपाठी ने आगे कहा कि पुराण में ये भी बताया गया है कि शनि देव के देखने पर जब गणेश जी का सिर उनके शरीर से अलग हुआ तो उस समय भगवान श्रीहरि ने अपना गरुड़ उत्तर दिशा की ओर फेंका, जो पुष्य भद्रा नदी की तरफ जा पहुंचा था। वहां पर एक हथिनी अपने एक नवजात बच्चे के साथ सो रही थी। भगवान श्रीहरि ने अपने गरुड़ की मदद से हथिनी के बच्चे सिर काटकर गणेश जी के शरीर पर लगा दिया था, जिसके बाद एक बार फिर गणेश जी को जीवन मिला।
भगवान श्री गणेश विवाह कथा में पं त्रिपाठी ने कहा कि शिव महापुराण के अनुसार, गणेश जी की दो पत्नियां थीं। रिद्धि और सिद्धि और उनके दो पुत्र शुभ और लाभ हैं। मौके पर सैकड़ों भक्तों ने कथा को ध्यान से सुना। कथा उपरान्त भगवान शिव वा भगवान श्री गणेश जी की संगीतमय आरती की गई।
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