

आम आदमी पार्टी (AAP) में एक बार फिर अंदरूनी कलह का सिलसिला तेज हो गया है। पार्टी के यूथ विंग के प्रदेश अध्यक्ष अरुण नायर ने अचानक अपने पद से इस्तीफा दे दिया है, जिससे पार्टी में असंतोष और गहरा हो गया है। अरुण नायर का इस्तीफा उस समय आया है जब पार्टी ने अपनी नई कार्यकारिणी की सूची जारी की है, जिसमें कई विवादास्पद नामों को शामिल किया गया है। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों और राजनीतिक जानकारों के अनुसार, इस सूची ने संगठन के कई पुराने और सक्रिय सदस्यों को नाराज कर दिया है।
सूत्रों का कहना है कि पार्टी की नई कार्यकारिणी में ऐसे लोगों को जगह दी गई है जो संगठन और राजनीति में अब तक सक्रिय नहीं रहे हैं। कई लोगों का आरोप है कि जो नेता पार्टी में केवल वरिष्ठ नेताओं की परिक्रमा करने वाले माने जाते हैं, उन्हें संगठन में अहम पद दिए गए हैं। इस फैसले से पार्टी के कार्यकर्ताओं के बीच गहरा असंतोष फैल गया है, और कई वरिष्ठ सदस्य अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर कर रहे हैं।
नेताओं में असंतोष का बढ़ता क्रम
अरुण नायर का इस्तीफा पार्टी के अंदरूनी हालात की गंभीरता को उजागर करता है। नायर के इस्तीफे के पहले भी पार्टी के भीतर असंतोष की कई खबरें सामने आई थीं। बिलासपुर की प्रमुख नेत्री उज्वला कराड़े और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष कोमल उपेन्डी जैसे बड़े नाम भी पहले ही आम आदमी पार्टी छोड़ चुके हैं। इन इस्तीफों ने साफ कर दिया है कि पार्टी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं को संतुष्ट रखने में नाकाम साबित हो रही है।
पार्टी में बड़े नेताओं का प्रभाव
आम आदमी पार्टी में बड़े नेताओं के आसपास सिमटी राजनीति अब संगठन को कमजोर कर रही है। जानकारों का कहना है कि पार्टी में केवल चापलूसों और बड़े नेताओं के समर्थकों को तवज्जो दी जा रही है। निचले स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं और नेताओं की उपेक्षा की जा रही है, जिससे संगठन के भीतर असंतोष और बढ़ रहा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यदि इसी तरह से पार्टी के भीतर असंतोष और बढ़ता गया, तो यह छत्तीसगढ़ में पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका साबित हो सकता है।
भविष्य में पार्टी को बड़ा नुकसान
अगर हालात जल्द ही नहीं सुधारे गए, तो आम आदमी पार्टी छत्तीसगढ़ में टूट की कगार पर पहुंच सकती है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पार्टी की मौजूदा स्थिति उसे बड़े राजनीतिक संकट की ओर धकेल रही है। संगठन के कई बड़े और अनुभवी नेता पहले ही पार्टी छोड़ चुके हैं और कई अन्य भी जल्द ही इस्तीफा दे सकते हैं। ऐसे में पार्टी की राजनीतिक ताकत कमजोर हो सकती है और इसका असर आगामी नगरिय निकाय चुनावों में साफ दिखाई दे सकता है।

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