


बरगवां (गुड्डी चौक)। आत्मा सतोगुणी है आत्मा का स्वधर्म शांति है, ज्ञान चेतना में निहित है। ज्ञान के अनुभव से सातों गुणों की अनुभूति सहज होती है और जीवन के सभी समस्याओं का समाधान भी कर सकते हैं। आत्मा में ही मन, बुद्धि और संस्कार है l सारा संसार मन के आधार पर चल रहा है लेकिन मन आत्मा की शक्ति हैआज स्वयं का सत्य ज्ञान ना होने के कारण आत्मा अपनी कर्म इंद्रियों का गुलाम बन गया हैl मनुष्य का ज्यादा ध्यान भौतिकता की ओर है व्यक्ति, वैभव, वस्तु जो विनाशी हैं उस पर ज्यादा ध्यान है। हमारे जीवन का ज्यादातर समय चल-अचल संपत्ति बढ़ाने में ही चला जाता है जबकि यह संपत्ति विनाशी संपत्ति है। आत्मिक संपत्ति ज्ञान, प्रेम, सुख, शांति, पवित्रता, शक्ति, आनंद है lइन नीज गुणों का चिंतन करने से जीवन में संतुष्टता का अनुभव होता है l
उक्त बातें गुड़ी चौक बरगवां ग्राम में आयोजित सात दिवसीय संगीतमय “आध्यत्मिक रहस्यों द्वारा खुशहाल जीवन – श्रीमदभगवत गीता ज्ञान यज्ञ” कार्यक्रम के तीसरे दिन ब्रह्माकुमारी शशिप्रभा दीदी जी ने कही।
दीदी ने बतलाया कि जिस प्रकार हमारे शरीर में पानी की कमी से हम पानी की मांग करते हैं उसी प्रकार ज़ब हमारे जीवन में प्रेम की कमी होती है तो हम आपस में एक दूसरे से प्रेम की अपेक्षा करने लगते हैं जबकि हम खुद ही किसी को प्रेम नहीं देते। स्वामी विवेकानंद जैसे महापुरुषों की तरह हम भी अपनी आत्मिक सम्पत्ति बढ़ाने का प्रयास करेंगे, मेडिटेशन व सकारात्मक चिंतन आदि विधियों से अपनी बैटरी स्वयं चार्ज करेंगे तब हम सभी को प्यार बाँट सकेंगे…और घर या कार्यक्षेत्र का वातावरण शक्तिशाली बनेगा। क्रोध है तो जीवन नरक है और प्रेम है तो जीवन स्वर्ग के समान हैl
दीदी ने बतलाया कि अब कर्म अकर्मक और विकर्म की गहन गति है इसे समझ, हमें कर्म क्षेत्र पर कर्मयोगी बनकर कर्म करना चाहिए क्योंकि जो हम देंगे वही हमारे पास लौट कर आएगा कर्म फल अनेक जन्मों तक हमारा पीछा नहीं छोड़ती आज जो प्राप्त है वह भी हमारे पूर्व जन्मों का कर्म फल है इसलिए वर्तमान को श्रेष्ठ बनाएं सफल बनाएं सबको दुआएं दें सहयोग दें सच्चे दिल से अपने सहयोगियों की प्रशंसा करें जीवन में हर एक व्यक्ति महत्वपूर्ण है कभी किसी का अपमान ना करें सभी के महत्व को समझें दुआएं जीवन में हमें मौत के मुख से भी बचाने की शक्ति रखता है l कर्म का बीज विचार है अतः अपने विचारों के स्तर पर परिवर्तन करें सोचकर भी सोचे कि मुझे क्या सोचना चाहिए क्योंकि हम जो सोचते हैं वही हमारे कर्म में परिणित होता है अतः हमें कर्म सिद्धांत को भलीभांति जानना आवश्यक हैl
अंत में सभी ने श्रीमद भगवत गीता माता की आरती की। इस अवसर पर समस्त ईश्वरीय परिवार एवं ग्राम के गणमान्य नागरिकों ने गीता का श्रवण किया।