


इस नये वर्ष के पहले माह की 22 तारीख को अर्थात कुछ दिनों बाद अयोध्या में भारत के सार्वकालिक लोकनायक और मेरे और सबके भगवान राम माता सीता और अपने प्रिय अनुज लक्ष्मण के साथ विराजेंगे। इस घड़ी की पूरे भारतवर्ष और भारतीयों को प्रतीक्षा है । भगवान राम और उनका चरित्र हमारे लिए युगो-युगो से आदर्श रहा है और भगवान राम ही नहीं बल्कि भगवान राम और रामचरित मानस का हर पात्र आदर्श की अपनी गाथा खुद कहता हुआ दिखता है तभी तो हम आज भी परिवार के लिए राम जैसे पति , राम जैसा बेटा, राम जैसा भाई राम जैसा राजा और राम जैसा तपस्वी, मनस्वी और ओजस्वी चरित्र चाहते हैं पर राम जैसा न कोई दूसरा हुआ है और न होगा लेकिन राम जैसा बनने की कोशिश भी मनुष्य को महान बना देगी। दरअसल रामचरित मानस का हर पात्र अपने पात्र का आदर्श है अगर राम जैसा बेटा है तो भरत जैसा भाई भी है जो अपने भाई के राज्य को उनका प्रतिनिधि बन कर देखभाल करता है । भरत है तो लक्ष्मण जैसा भाई भी है जो भाई और भाभी की सेवा के लिए नवविवाहिता पत्नी को छोड़कर वन-वन भटकता है और पत्नी के साथ रहने पर भाई की सेवा से ध्यान भंग न हो जाए इसलिए पत्नी के अनुरोध पर भी पत्नी को साथ नहीं लाता । इसके अलावा उस युग में रावण जैसे भाई के कुंभकर्ण जैसे भाई थे जो यह जानते थे माता सीता साक्षात जगदंबा है और राम भगवान है पर कुंभकर्ण ने भी आदर्श भाई के चरित्र का निर्वहन करते हुए युद्ध किया और भगवान राम के हाथ से मरकर मुक्ति पाई। इन सबके चरित्र का आदर्श प्रस्तुत करने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी को आज स्मरण करना आवश्यक है क्योंकि वाल्मीकि जी के बाद राम और रामायण के हर पात्र के साथ न्याय और आदर्श का समन्वय तुलसी दास जी के अतिरिक्त कोई नहीं कर पाया है ठीक वैसे ही जैसे भगवान कृष्ण के चरित्र के साथ सूरदास भी यमुना के किनारे और वृंदावन के करील वन में शायद सूक्ष्म रूप में जीते हुए बालकृष्ण के साथ करते रहे हैं इसलिए हिंदी साहित्य में सूरदास और तुलसीदास को सूर्य और चंद्रमा की उपमा दी गई है –
सूर सूर तुलसी शशि
उडुगन केशवदास
हिंदी साहित्य में तुलसी दास को लोकनायक या समन्वयवादी कवि कहा जाता है क्योंकि उनका लिखा रामचरित मानस हर भारतीय का अभिमान है, गर्व है । भगवान राम हमारा राष्ट्रीय चरित्र है जो सदियों-सदियों से हमे बल , धैर्य, दृढ़ता और परिस्थितियों से हार नहीं मानने और अपने वचन पर अडिग रहने की सीख देते आये है । जब तुलसीदास जी ने रामचरित मानस लिखा वह समय था जब मुग़ल साम्राज्य की नींव पड़ चुकी थी और रामचरित मानस के लिखे जाने के सौ साल बाद शाहजहां ने अपनी मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया । बीस वर्ष बेहतरीन कारीगरों की मेहनत और उस ज़माने के सात सौ करोड़ रुपए खर्च कर, अपना खजाना खाली कर शाहजहां ने अपना नाम इतिहास में लिखवाया वहीं तुलसीदास जी ने दो साल और सात माह की मेहनत के बाद भारतीयों को ऐसा ग्रंथ दिया जो युगों-युगों तक भारतीयों को अंधेरे में प्रकाश देता है, भटकते मन को राह देता है और निराशा को आशा देता है । तुलसीदास जी के समकालीन संत कवियों ने भी भगवान राम के चरित्र को लिखा है पर रामचरित मानस कोई गढ़ नहीं पाया है । उस युग में विदेशी आक्रांताओं का भारत पर आक्रमण शुरू हो चुका था । भारतीयों के सामने इस्लाम था हिंदू धर्म खतरे में था और भारतीय खुद अनेक धर्म संप्रदाय और पंथों में बंट चुका था। शैव , शाक्त , वैष्णव आदि भारतीय स्वयं एक दूसरे से उपासना पद्धति और भगवान के नाम पर लड़ रहे थे तो विदेशी आक्रांताओं से कौन लड़ता। उस युग में शिव , विष्णु और राम के भक्त भी आपस लड़ते रहें। तुलसीदास जी समझ गये थे कि सबसे पहले हिंदुओं को ही आपस में जोड़ना जरूरी है और विष्णु और शिव का भेद मिटाना है इसलिए वे रामचरित मानस में राम के मुख से कहलवाते है –
“शिवद्रोही मम दास कहावा
सो नर मोहि सपनेहू नही भावा“
भगवान शिव भी रामचरित मानस में कहते हैं –
राम मेरा ही अंश है इसलिए राम को पूजन मुझे पूजने बराबर है
इस तरह तुलसीदास जी ने संप्रदाय और पंथों के झगडे को समाप्त किया । तुलसीदास जी दूरदर्शी थे। वे पर्यावरण के मित्र गिद्धों की भूमिका को भी अच्छी तरह जानते थे और भविष्य में उनके अस्तित्व के संकट से भी शायद अवगत थे इसलिए उन्होंने गरुड़ राज की भक्ति और उनके त्याग से हमें रामचरित मानस के माध्यम से परिचित कराया और आज यह पौराणिक काल के पक्षी अपने अस्तित्व की लडाई लड़ रहे हैं । भगवान राम ने शबरी के जूठे बेर खाकर भेदभाव रहित समाज का उदाहरण दिया है वहीं वानर जाति के सुग्रीव से मित्रता निभाई और राक्षसराज रावण के भाई विभीषण को भी सखा माना , यह भी राम के चरित्र की विनम्रता और समाजवाद का उदाहरण था कि विभिषण , सुग्रीव और निषादराज की भक्ति उनके प्रति दास्यभाव की थी उन्होंने राम को अयोध्या का राजा नहीं बल्कि भगवान के रुप स्वीकारा परंतु श्रीराम उन्हें सदैव एक राजा एक सखाभाव का सम्मान किया । जाति स़ंस्तरण उस युग की आवश्यकता थी लेकिन जाति का भेदभाव उन्होंने नहीं माना इसलिए निषादराज को उन्होंने मित्र माना और गले लगाया दरअसल पूरा रामचरित मानस भारतीय चरित्र का अप्रतिम, अद्वितीय उदाहरण है इसलिए रामचरित मानस भारतीयों के हृदय में बसता है। इसकी सीख हमारे लिए प्राणवायु है जिससे हमारी धड़कन सुचारु चलती है और जिस ह्दय में राम है वहां अन्य मनोविकार के लिए जगह ही कहां बच जाता हैं
जैसा कि कबीरदास जी ने अपने एक दोहे में कहा है –
प्रेम की गली अति सांकरी इसमें न दोउ समाय
तो जहां राम है वहां दूसरा कौन हो सकता है।

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