

सुदामा का नाम सुनते ही भगवान श्रीकृष्ण सिंहासन छोड़ मिलने दौड़े
आंसुओं की धार से सुदामा की पग धोए

सिहोरा
बाबाताल स्थित शिव मंदिर सिहोरा पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा के अंतिम दिवस सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रीमद्भागवत पुराण कथा मे पंडित इंद्रमणि त्रिपाठी ने श्रीकृष्ण-सुदामा की आदर्श मित्रता की कथा सुनाते हुए कहा कि सुदामा से परमात्मा ने मित्रता का धर्म निभाया। राजा के मित्र राजा होते हैं रंक नहीं, पर परमात्मा ने कहा कि मेरे भक्त जिसके पास प्रेम धन है वह निर्धन नहीं हो सकता। कृष्ण और सुदामा दो मित्र का मिलन ही नहीं जीव व ईश्वर तथा भक्त और भगवान का मिलन था।आज मनुष्य को ऐसा ही आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए।
कथावाचक इंद्रमणि त्रिपाठी ने आगे कहा कि कृष्ण और सुदामा जैसी मित्रता आज कहां है। यही कारण है कि आज भी सच्ची मित्रता के लिए कृष्ण-सुदामा की मित्रता का उदाहरण दिया जाता है। द्वारपाल के मुख से पूछत दीनदयाल के धाम, बतावत आपन नाम सुदामा, सुनते ही द्वारिकाधीश नंगे पांव मित्र की अगवानी करने पहुंच गए। लोग समझ नहीं पाए कि आखिर सुदामा में क्या खासियत है कि भगवान खुद ही उनके स्वागत में दौड़ पड़े। श्रीकृष्ण ने स्वयं सिंहासन पर बैठाकर सुदामा के पांव पखारे। कृष्ण-सुदामा चरित्र प्रसंग पर श्रद्धालु भाव-विभोर हो उठे।
उन्होंने आगे कहा कि श्रीकृष्ण को सत्य के नाम से पुकारा गया। जहां सत्य हो वहीं भगवान का जन्म होता है। भगवान के गुणगान श्रवण करने से तृष्णा समाप्त हो जाती है। इस अवसर पर भगवान श्री कृष्ण एवं सुदामा के सुसज्जित पात्रों का सजीव चित्रण वा मंचन भी किया गया।संगीत मंडली व महिला मण्डल द्वारा श्रीकृष्ण-सुदामा की मित्रता के संगीतमय भजनों की सुमधुर प्रस्तुति की गई।जिससे श्रोता व दर्शक मंत्रमुग्ध हो उठे।भगवान श्रीकृष्ण-सुदामा की नयनाभिराम झाँकी की आरती व श्रीमद्भागवत पुराण की आरती के अवसर पर सभी भक्तगण, श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए।

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