

आज समाज में अनेक समस्याएं विद्यमान हैं जिससे समाज और परिवार लड़ रहा है इसके साथ एक बड़ी समस्या सिर उठा रही है और यह समस्या हर युग में रही है और इससे हर समाज लड़ता है और वह समस्या है आज के युवाओं में बढ़ता आक्रोश यानी गुस्सा । तीन दिन पहले की बात है रायपुर में एक लड़की के द्वारा गूंगे बहरे लड़के को चाकू मारकर हत्या कर दी गई । चाकू मारने का कारण क्या था ? लड़की के गुस्से का कारण बताया जा रहा है कि वह लड़की अपनी मां को स्कूटी लेकर जा रही थी और लड़के ने हार्न की आवाज नहीं सुनी और उसे रास्ता नहीं दिया । इस बात पर उस लड़की को बहुत गुस्सा आया उसने साइकिल रुकवाकर उस लड़के को चाकू से मारा और वही उसकी हत्या कर दी बाद में पता चला कि वह लड़का गूंगा बहरा था इसलिए वह आवाज नहीं सुन पाया । अब प्रश्न यह उठता है कि हार्न की आवाज ना सुन पाने के कारण रास्ता नहीं दिया तो क्या यह कारण पर्याप्त था कि वह लड़की उसकी हत्या कर दी । आखिर उस लड़की में इतना गुस्से का कारण क्या है कि वह हत्या जैसे कांड को अंजाम दे । यह साधारण बात नहीं कोई किसी के रास्ता ना देने पर कोई किसी की हत्या कर दे । ऐसा भी बताया जा रहा है कि उस लड़की के द्वारा इसी तरह अन्य लोगों को भी धमकी दी जा रही थी और उसकी फोटो इंस्टाग्राम में भी डाली जा रही थी । बताया जा रहा है लड़की के परिजनो द्वारा इस कांड का विरोध किया जा रहा है और उसे पुलिस की गलती बताई जा रही है हमारा प्रश्न यह है कि आखिर उस लड़की में इतना गुस्सा कहां से और कैसे आया । आज का युवा इतने आक्रोश में क्यों है ? उनमें इतना गुस्सा कहां से आया ? आज के युवाओं में सहनशीलता नाम की चीज कहां गुम हो गई ? और उसका गुम हो जाने का कारण क्या है ? किसी भी समाज में इस तरह की हो रही घटनाओं की जिम्मेदारी और कारण भी समाज के वातावरण में खोजी जानी चाहिए क्योंकि हम समाज में रहते हैं और यहां घट रही घटनाओं का कारण और निदान भी यही होगा । इसलिए यह कहना जायज ही होगा कि हम अपने आने वाली पीढ़ियों को जैसा वातावरण देंगे उनकी मानसिकता वैसे ही बनेगी । संयुक्त परिवार पूरी तरह टूट चुके हैं आज के माता पिता यह मान कर चलते हैं की बेटी को अगर ब्याह करना है तो ऐसे नौकरीपेशा लड़के से जो माता-पिता से दूर रहकर नौकरी कर रहा है क्योंकि आज के माता-पिता को यह मालूम है कि उसकी बेटी संयुक्त परिवार में सास ससुर और देवर-ननद में उनके साथ निभा नहीं पाएगी उसका कारण है यह कि हमने अपने बेटे और बेटियों को संयुक्त परिवार में नहीं पाला है तो हम यह कैसे अपेक्षा रख सकते हैं कि हमारे बेटे और बेटियां संयुक्त परिवार में निभा पाएंगे । पुराने जमाने में संयुक्त परिवारों में जब बच्चों का लालन-पालन होता था तो ममेरे – चचेरे भाइयों और बहनों के साथ खेलते-खाते और लड़ाई झगड़ा करते हुए बच्चों का सामाजिकरण होता था जहां बच्चे लड़ते झगड़ते और बांटकर खाने का गुण बचपन से सीखते थे और धीरे-धीरे यह हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा बन जाता था और हमें सहनशीलता और परिस्थितियों से लड़ने क्षमता आती थी । यह हमारे पारिवारिक सामाजिक जीवन के आधार थे । आज का युग हमारे वक्त के र फा्स्ट फूूड ,फास्ट लाइफ और fast car से आगे निकलकर just now और डिजिटल युग है । यानी “तुरंत चाहिए” वाली मानसिकता काम कर रही आज के युवाओं के ऊपर केवल सफलता ही नहीं बल्कि सबसे ऊपर रहने का दबाव काम कर रहा है जिसके कारण वह हर किसी को पीछे छोड़कर आगे निकल जाना चाहता है और इसे आगे निकल जाने की होड़ में वह सबको पीछे छोड़ देना चाहता है और यदि कोई भी उसके आगे निकलने की होड़ में रोड़ा बनता है वह उसे मिटा देना चाहता है । यह जो सबसे ऊपर रहने का जो दबाव है वह युवाओं को आक्रोशित बना रहा है और जिस समाज में ऐसे दबाव होंगे तो समाज को भी भविष्य में उस दबाव के अनचाहे परिणाम को सहन करना होगा क्योंकि हम जैसा बो रहे हैं हमें वैसा ही फल काटना ही होगा । समाज का यह मानसिक दबाव हमारे युवाओं को मानसिक बीमारियां दे रहा है और हमे अब ऐसे युवाओं के लक्षण पहचान कर हमें उनका समुचित इलाज कराना चाहिए जिससे हम उन्हें ऐसे पीड़ा और पीड़ा देने के अपराध बोध से बचा सकें ।

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